
हममें से कई लोग इस सवाल से जूझते हैं — “मेरी कुंडली में तो विवाह का योग है, फिर शादी क्यों नहीं हो रही?” कभी रिश्ते बनते हैं, पर टिकते नहीं। कभी प्रस्ताव आते हैं, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ती। यह समस्या केवल कुंडली के दोषों या दशा-गोचर की बात नहीं होती। कभी-कभी इसका कारण होता है — आत्मा का विवाह के लिए तैयार न होना। जी हाँ, जब तक आत्मिक स्तर पर व्यक्ति परिपक्व नहीं होता, तब तक ब्रह्मांड भी विवाह को आगे नहीं बढ़ाता।
वास्तव में, विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है। यह आत्मा का एक उच्चतम स्तर पर दूसरे आत्मा से जुड़ाव है। जब तक आत्मा भीतर से संतुलित नहीं होती, उसकी चेतना पूरी तरह प्रेम और जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं होती, तब तक विवाह की राह टलती रहती है। कुंडली में विवाह योग मौजूद होने के बावजूद जब बार-बार रुकावटें आती हैं, तो समझना चाहिए कि यह केवल ग्रहों की चाल नहीं, आत्मा की परीक्षा भी है।
इस संदर्भ में शनि और केतु जैसे ग्रहों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। अगर कुंडली में शनि 7वें भाव में है, या उस पर दृष्टि डाल रहा है, तो वह व्यक्ति को रिश्तों के माध्यम से धैर्य, जिम्मेदारी और परीक्षण की सीख देता है। इसी तरह केतु का प्रभाव व्यक्ति को सांसारिक रिश्तों से थोड़ी दूरी की ओर ले जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि विवाह असंभव है, बल्कि यह दर्शाता है कि व्यक्ति को पहले अपने भीतर के भ्रम, पुराने घाव या अधूरी कहानियाँ समाप्त करनी होंगी।
कई बार लोग कहते हैं कि दशा और गोचर तो बहुत अच्छे चल रहे हैं, फिर भी शादी क्यों नहीं हो रही। इसका उत्तर सीधा है — दशा चल रही है, लेकिन चेतना नहीं। मतलब यह कि जब तक व्यक्ति अपने पुराने अनुभवों से उबर कर एक भावनात्मक रूप से स्थिर अवस्था में नहीं आता, तब तक ग्रहों की शुभ दशाएं भी परिणाम नहीं देतीं। विवाह का समय केवल बाहरी नहीं होता, वह आंतरिक रूप से भी निर्धारित होता है।
कुछ कुंडलियों में 12वां भाव अत्यधिक सक्रिय होता है, विशेष रूप से जब उसमें शुक्र, चंद्रमा या केतु स्थित हों। ऐसे योग दर्शाते हैं कि व्यक्ति का झुकाव अकेलेपन, ध्यान या आध्यात्मिक खोज की ओर हो सकता है। विवाह इन लोगों के जीवन में देर से आता है, या कई बार आता ही नहीं। क्योंकि उनका संबंध पहले स्वयं से जुड़ने का होता है। जब तक वे अपनी आत्मा से सच्चा संबंध नहीं बनाते, तब तक दूसरे से संबंध अस्थिर ही रहते हैं।
राहु एक और रहस्यमय ग्रह है जो व्यक्ति को भ्रम में डालता है। जब राहु 7वें भाव में हो या शुक्र के साथ युति करे, तो यह संकेत देता है कि व्यक्ति आकर्षण और वासना में उलझ सकता है। ऐसे संबंध जल्दी बनते हैं, लेकिन गहराई और स्थिरता नहीं ला पाते। ये सभी घटनाएं आत्मा को यह सिखाती हैं कि सच्चा प्रेम केवल बाहरी नहीं होता — उसे भीतर महसूस किया जाता है।
कभी-कभी कुंडली में ऐसे भी संकेत होते हैं जो बताते हैं कि व्यक्ति शायद इस जन्म में विवाह के लिए बना ही नहीं है। जैसे अगर 7वां भाव निर्बल हो, नवांश कुंडली में विवाह से जुड़े भाव पापग्रहों से ग्रसित हों, या शुक्र नीच का हो — तो यह संकेत हो सकता है कि व्यक्ति का जीवन मार्ग विवाह की बजाय आध्यात्मिक सेवा, ध्यान या आत्म-विकास की ओर है। ऐसे लोग विवाह से अधिक आत्मा की यात्रा में संतुष्टि पाते हैं।
कई बार विवाह में देरी इसलिए होती है क्योंकि आत्मा पुराने जन्म के अधूरे रिश्तों से जुड़ी होती है। ये रिश्ते karmic होते हैं, और इस जन्म में भी वही patterns दोहराते हैं। व्यक्ति बार-बार ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होता है जो उसे चोट पहुँचाते हैं या अधूरा छोड़ जाते हैं। जब तक आत्मा इन karmic cycles से मुक्त नहीं होती, तब तक स्थायी विवाह संभव नहीं होता।
इसलिए जब विवाह में विलंब हो, तो केवल ग्रह दोष या कुंडली के योगों की चिंता न करें। यह आत्मा के स्तर की भी बात है। विवाह केवल तब सफल होता है जब व्यक्ति भीतर से संतुलित हो, स्वयं से जुड़ा हो और अपने karmic past से मुक्त हो चुका हो। विवाह तब नहीं होता जब समाज चाहता है, बल्कि तब होता है जब आत्मा तैयार होती ह
कुंडली में विवाह में देरी केवल दशा, योग या ग्रहों की चाल का परिणाम नहीं है। यह एक गहरी, आत्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है। जब आत्मा पूरी तरह प्रेम, समर्पण और जिम्मेदारी के लिए तैयार होती है — तभी ब्रह्मांड विवाह की राह खोलता है। इसलिए विवाह में देरी को दोष नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अवसर समझें — खुद को समझने, हील करने और सही समय का स्वागत करने का।