भारतीय संस्कृति में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है। लेकिन हर रिश्ते की तरह वैवाहिक संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आते हैं। कुछ मामलों में पहला विवाह सफल नहीं होता और व्यक्ति के जीवन में दूसरा विवाह (Second Marriage) करने की परिस्थितियाँ बनती हैं। वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) के अनुसार, जन्म कुंडली (Horoscope) में ऐसे कई संकेत छिपे रहते हैं जो बताते हैं कि व्यक्ति का विवाह स्थायी रहेगा या उसे दूसरा विवाह करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं, दूसरे विवाह के योग कुंडली में कैसे पहचाने जाते हैं और इनके ज्योतिषीय रहस्य क्या हैं।
विवाह और दांपत्य जीवन से जुड़े मुख्य भाव
ज्योतिष में विवाह और दांपत्य जीवन का विश्लेषण मुख्य रूप से इन भावों से किया जाता है:
- सप्तम भाव (7th House): विवाह और जीवनसाथी का प्रमुख कारक।
- द्वितीय भाव (2nd House): परिवार और वैवाहिक स्थिरता।
- अष्टम भाव (8th House): दांपत्य सुख और दीर्घायु।
- द्वादश भाव (12th House): वैवाहिक जीवन का त्याग, विदेश या अलगाव।
इनमें से विशेष रूप से सप्तम भाव और उसका स्वामी (7th Lord) विवाह की स्थिति और स्थिरता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।
दूसरा विवाह योग किन परिस्थितियों में बनता है?
1. सप्तम भाव की अशांति
यदि सप्तम भाव पर पाप ग्रहों (शनि, मंगल, राहु, केतु) का प्रभाव हो, तो पहला विवाह सफल नहीं रहता। ऐसी स्थिति में तलाक या अलगाव की संभावना अधिक होती है, जिससे दूसरा विवाह करना पड़ सकता है।
2. सप्तम भाव का स्वामी पीड़ित होना
यदि सप्तम भाव का स्वामी (7th Lord) नीच राशि में हो, पाप ग्रहों से ग्रस्त हो या अष्टम/द्वादश भाव में स्थित हो, तो विवाह में अस्थिरता आती है। इससे पहला विवाह टूट सकता है और दूसरा विवाह योग बन सकता है।
3. द्वितीय और अष्टम भाव का संबंध
- द्वितीय भाव परिवार का प्रतिनिधित्व करता है।
- अष्टम भाव पति-पत्नी के दीर्घकालिक संबंध को दर्शाता है।
यदि इन भावों पर राहु, केतु या शनि का प्रभाव हो, तो पारिवारिक कलह और अलगाव की संभावना बढ़ जाती है।
4. मंगल दोष (Manglik Dosha)
यदि मंगल 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में हो और उसका निवारण न किया गया हो, तो वैवाहिक कलह और तलाक के योग बनते हैं। इससे भी दूसरा विवाह योग संभव होता है।
5. राहु–केतु का प्रभाव
- यदि राहु सप्तम भाव में हो, तो विवाह में भ्रम, धोखा या अस्थिरता आती है।
- केतु सप्तम भाव में हो तो जीवनसाथी से दूरी और अलगाव की स्थिति बनती है।
6. दशा और गोचर का प्रभाव
कभी-कभी ग्रहों की दशा और गोचर (Transit) भी विवाह में अशांति लाते हैं। यदि अशुभ दशा में विवाह होता है, तो उसके टूटने की संभावना बढ़ जाती है। बाद में दूसरी अनुकूल दशा आने पर दूसरा विवाह हो सकता है।
दूसरे विवाह का संकेत देने वाले विशेष योग
1. सप्तम भाव में दो ग्रहों का संयोजन
यदि सप्तम भाव में दो विपरीत ग्रह (जैसे शुक्र और शनि, या मंगल और राहु) स्थित हों, तो पहले विवाह के टूटने और दूसरे विवाह की संभावना बढ़ती है।
2. द्वितीय विवाह के स्पष्ट योग
- सप्तमेश (7th Lord) का बार-बार पीड़ित होना।
- सप्तम भाव में पाप ग्रह का प्रभाव और शुक्र का अशुभ स्थान।
- द्वितीय भाव और सप्तम भाव में असमंजस की स्थिति।
3. दशम और एकादश भाव का प्रभाव
कभी-कभी करियर या आर्थिक कारणों से भी विवाह में कलह होती है। यदि दशम और एकादश भाव में राहु/शनि हों, तो दूसरा विवाह योग बन सकता है।
जीवनसाथी का स्वभाव और दूसरा विवाह
दूसरे विवाह के योग तभी बनते हैं जब पहला विवाह टूटे। जीवनसाथी के स्वभाव से भी इसकी पहचान की जा सकती है:
- मंगल और राहु: झगड़ालू और आक्रामक स्वभाव।
- केतु: दूरी और उदासीनता।
- शनि: ठंडापन और मानसिक असंतोष।
- शुक्र मजबूत: आकर्षण तो होता है लेकिन स्थिरता की कमी रहती है।
दूसरा विवाह कब होता है? (Timing of Second Marriage)
- ग्रह दशा: जब सप्तमेश या शुक्र की अशुभ दशा खत्म होकर नई शुभ दशा शुरू होती है।
- गोचर: जब बृहस्पति (गुरु) सप्तम भाव या उसके स्वामी पर शुभ दृष्टि डालता है।
- द्वितीय विवाह योग: प्रायः व्यक्ति के जीवन के 30 से 42 वर्ष के बीच दिखाई देते हैं।
दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं?
ज्योतिष केवल यह नहीं बताता कि दूसरा विवाह होगा, बल्कि यह भी बताता है कि वह सफल रहेगा या नहीं।
- यदि दूसरे विवाह के समय गुरु (बृहस्पति) और शुक्र मजबूत हों, तो दूसरा विवाह स्थिर और सुखी रहता है।
- यदि वही दोष दोबारा सक्रिय हों (जैसे मंगल दोष या राहु-केतु का प्रभाव), तो दूसरा विवाह भी टूट सकता है।
दूसरा विवाह योग शांति के उपाय
यदि कुंडली में दूसरा विवाह योग हो, तो ज्योतिषीय उपायों से वैवाहिक जीवन को सफल बनाया जा सकता है:
- शुक्र की शांति
- शुक्रवार को शिव-पार्वती की पूजा करें।
- हीरा, ओपल या जिरकॉन धारण करें (ज्योतिषी की सलाह से)।
- मंगल दोष निवारण
- हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- मंगलवार को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएँ।
- राहु–केतु शांति
- कालसर्प योग पूजा कराएँ।
- नाग-नागिन की प्रतिमा की पूजा करें।
- शनि शांति
- शनिवार को तेल और तिल का दान।
- शनि मंत्र का जाप।
- सरल उपाय
- पति-पत्नी मिलकर शिवलिंग पर जल चढ़ाएँ।
- वैवाहिक जीवन में धैर्य और संवाद बनाए रखें।
जन्म कुंडली केवल भविष्य बताने का साधन नहीं है, बल्कि यह हमें चेतावनी भी देती है कि जीवन में किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरा विवाह योग तभी बनता है जब पहला विवाह असफल हो और ग्रह-योग ऐसा संकेत दें। वैदिक ज्योतिष से यह संभव है कि हम विवाह में आने वाली समस्याओं को पहले ही समझ लें और सही उपाय करके रिश्तों को बचा सकें।
🌸 अगर दूसरा विवाह करना भी पड़े तो उचित समय, शुभ मुहूर्त और ग्रह शांति से किया गया विवाह जीवन में स्थिरता और सुख अवश्य लाता है।