प्रस्तावना
वैदिक ज्योतिष में विवाह जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है। जिस प्रकार जन्म कुंडली (D-1) से किसी व्यक्ति का संपूर्ण जीवन देखा जाता है, उसी प्रकार नवांश कुंडली (D-9 चार्ट) से विवाह, दांपत्य सुख, जीवनसाथी का स्वभाव और वैवाहिक जीवन की स्थिरता का आकलन किया जाता है।
कई बार जन्म कुंडली में सब कुछ सही होने के बावजूद विवाह में देरी, विवाह टूटना या वैवाहिक असंतोष देखने को मिलता है। इसका कारण अक्सर नवांश कुंडली होती है, जिसे विवाह का सच्चा दर्पण कहा जाता है।
नवांश कुंडली (D-9) क्या है?
- नवांश कुंडली को “धर्मांश” भी कहा जाता है।
- यह जन्म कुंडली (D-1) का नवमांश विभाजन है।
- प्रत्येक राशि को 9 भागों में बाँटकर नवांश तैयार किया जाता है।
- इसका सबसे बड़ा महत्व विवाह और जीवनसाथी से जुड़ा है।
संक्षेप में कहें तो जन्म कुंडली जीवन की बाहरी रूपरेखा है और नवांश कुंडली जीवन की आंतरिक सच्चाई।
विवाह और नवांश कुंडली का संबंध
- 7वाँ भाव और उसका स्वामी – विवाह और जीवनसाथी का कारक।
- शुक्र (Venus) – वैवाहिक सुख, आकर्षण और दांपत्य जीवन का मुख्य ग्रह।
- गुरु (Jupiter) – स्त्रियों के लिए पति का कारक।
- नवांश कुंडली – यह बताती है कि विवाह में स्थिरता होगी या नहीं, देरी होगी या समय पर।
7वें भाव का महत्व (D-1 और D-9 दोनों में)
- जन्म कुंडली में 7वें भाव से विवाह के अवसर और जीवनसाथी का मूल स्वभाव समझ आता है।
- लेकिन यदि 7वें भाव का स्वामी D-1 में अच्छा हो पर D-9 में नीच, पापग्रही या अशुभ भाव में चला जाए, तो विवाह में बाधाएँ आती हैं।
उदाहरण:
- यदि D-1 में 7वें भाव का स्वामी बलवान है लेकिन D-9 में नीच (Debilitated) हो जाए → विवाह में देरी और अस्थिरता निश्चित है।
- यदि D-9 में 7वें स्वामी पर शनि, राहु, केतु या मंगल की दृष्टि हो → दांपत्य जीवन में तनाव और देर से विवाह।
शुक्र की भूमिका नवांश कुंडली में
शुक्र (Venus) विवाह और दांपत्य सुख का सबसे बड़ा कारक है।
- यदि शुक्र D-9 में उच्च हो → उत्तम जीवनसाथी, सुंदरता, आकर्षण और सुखमय विवाह।
- यदि शुक्र D-9 में नीच (Debilitated) हो → विवाह में देरी, जीवनसाथी के साथ तालमेल की कमी, वैवाहिक कलह।
- यदि शुक्र पाप ग्रहों के साथ हो (शनि, राहु, केतु, मंगल) → विवाह में रुकावट और असंतोष।
विवाह में देरी के प्रमुख कारण (नवांश कुंडली के आधार पर)
- 7वाँ भाव या उसका स्वामी D-9 में कमजोर हो।
- शुक्र नीच या पापग्रही हो।
- शनि का प्रभाव – शनि विलंब कारक ग्रह है, इसके प्रभाव से विवाह देर से होता है।
- राहु–केतु का प्रभाव – भ्रम, असमंजस और रिश्तों में टूटन का कारण।
- मंगल दोष (Kuja Dosha) – नवांश में मंगल 1, 4, 7, 8, या 12वें भाव में हो।
विवाह सुख के संकेत नवांश कुंडली से
- यदि 7वाँ स्वामी उच्च या मित्र राशि में हो → विवाह सुखद।
- यदि शुक्र और गुरु शुभ ग्रहों के साथ हों → उत्तम जीवनसाथी।
- यदि नवांश लग्नेश और 7वाँ स्वामी आपस में संबंध बना रहे हों → सफल विवाह।
वैवाहिक जीवन की गहराई से जाँच
- नवांश लग्न – जीवनसाथी के स्वभाव और वैवाहिक जीवन की नींव।
- 7वाँ भाव – विवाह की स्थिति और स्थिरता।
- शुक्र – प्रेम, आकर्षण और दांपत्य सुख।
- गुरु – स्त्रियों के लिए पति का स्वभाव।
- चंद्रमा – मानसिक तालमेल और भावनात्मक जुड़ाव।
देरी से विवाह के ज्योतिषीय उपाय (Navamsa आधारित)
- शुक्र शांति पूजा → शुक्र कमजोर हो तो शुक्रवार उपवास, माँ लक्ष्मी की आराधना।
- शनि शांति → विवाह में शनि की बाधा हो तो शनिवार को शनि दान और तैलाभिषेक।
- मंगल दोष निवारण → हनुमान जी की पूजा, मंगलवार उपवास।
- राहु–केतु शांति → नागदेवता पूजा और राहु-केतु बीज मंत्र का जाप।
- नवग्रह शांति हवन → सभी ग्रहों के लिए सर्वोत्तम उपाय।
नवांश कुंडली (D-9 चार्ट) वैदिक ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण विभाजक चार्ट है। इसे विवाह का सच्चा चार्ट कहा जाता है। यदि जन्म कुंडली में सब कुछ अनुकूल दिखे लेकिन नवांश कुंडली में 7वाँ स्वामी या शुक्र कमजोर हो, तो विवाह में निश्चित रूप से देरी, असंतोष या अस्थिरता होगी।
इसलिए, विवाह का संपूर्ण विश्लेषण करने के लिए हमेशा जन्म कुंडली और नवांश कुंडली दोनों का एक साथ अध्ययन करना चाहिए।