कर्मिक नोड्स (राहु और केतु) और 7वें भाव में उनका प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को कर्मिक नोड्स कहा जाता है। ये ग्रह जीवन में अनुभव और सीख के माध्यम से जातक के कर्म और भाग्य को प्रभावित करते हैं। विशेषकर सप्तम भाव (7th house), सप्तम स्वामी (7th lord) या शुक्र (Venus) पर इनका प्रभाव विवाह और साझेदारी के मामलों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

राहु और केतु का प्रभाव जीवनसाथी के चयन, विवाह की उम्र और वैवाहिक जीवन की स्थिरता पर बड़ा असर डालता है। यह केवल देरी नहीं लाते, बल्कि जीवन में अनोखी, असामान्य या परिपक्व संबंधों की शिक्षा भी देते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे ये कर्मिक नोड्स विवाह और दांपत्य जीवन को प्रभावित करते हैं और किन उपायों से उनके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।

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राहुअसामान्य और विलंबित विवाह

राहु को अनियमितता, अप्रत्याशित परिस्थितियों और असामान्य घटनाओं का ग्रह माना जाता है। जब यह सप्तम भाव में स्थित होता है, तो इसके प्रभाव निम्नलिखित होते हैं:

  • असामान्य या अचानक रिश्ते: राहु जातक को ऐसे जीवनसाथी से जोड़ सकता है, जो पारंपरिक या सामान्य नहीं होता।
  • स्थिर विवाह में विलंब: राहु की अनियमित ऊर्जा विवाह को देर से होने देती है, ताकि जातक सही समय और सही व्यक्ति का चयन कर सके।
  • संबंधों में बदलाव: राहु की स्थिति जीवनसाथी या विवाह के प्रारंभिक चरण में भ्रम और अस्थिरता ला सकती है।

उदाहरण के लिए, यदि राहु सप्तम भाव में हो या 7वें स्वामी के साथ युति में हो, तो विवाह अक्सर 30 वर्ष के बाद होता है और जीवनसाथी का चयन असामान्य परिस्थितियों में होता है।

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केतुवैवाहिक जीवन में अलगाव

केतु को वैचारिक और आध्यात्मिक ग्रह माना जाता है। जब यह सप्तम भाव में होता है, तो इसके प्रभाव निम्नलिखित होते हैं:

  • संबंधों में तटस्थता: केतु जातक को जीवनसाथी के प्रति भावनात्मक या भौतिक रूप से अलगाव का अनुभव करा सकता है।
  • दुनियावी साझेदारी में कठिनाई: विवाह या साझेदारी के लिए आवश्यक सामान्य तालमेल के लिए संघर्ष।
  • वैवाहिक जीवन में मानसिक दूरी: केतु की स्थिति कभी-कभी जीवनसाथी के प्रति उदासीनता या कम जुड़ाव ला सकती है।

यदि केतु 7वें स्वामी या शुक्र के साथ युति में हो, तो विवाह असामान्य समय पर या विलंब के साथ होता है। कभी-कभी जातक आध्यात्मिक या दूरस्थ जीवनसाथी से जुड़ते हैं।

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राहु और केतु का सप्तम स्वामी या शुक्र पर प्रभाव

सप्तम स्वामी (7th lord) और शुक्र (Venus) जीवनसाथी, प्रेम और वैवाहिक सुख के प्रमुख कारक हैं। जब राहु या केतु इन पर प्रभाव डालते हैं, तो निम्नलिखित स्थितियाँ बनती हैं:

  • असामान्य विवाह: जीवनसाथी का चयन पारंपरिक नहीं होता या सामाजिक रूप से असामान्य होता है।
  • विलंबित विवाह: विवाह अपेक्षित उम्र के बाद होता है।
  • संबंधों में चुनौतियाँ: राहु/केतु के प्रभाव से दांपत्य जीवन में प्रारंभिक संघर्ष या अस्थिरता आती है।

उदाहरण के लिए, यदि राहु 7वें स्वामी के साथ युति में हो और शुक्र पर दृष्टि डालता हो, तो जातक का विवाह अपेक्षाकृत देर से होता है और जीवनसाथी का चयन असामान्य परिस्थितियों में होता है।

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राहु/केतु के प्रभाव से विवाह में विलंब

राहु और केतु अक्सर विवाह में विलंब का कारण बनते हैं। इसका उद्देश्य जातक को निम्नलिखित चीज़ों के लिए तैयार करना होता है:

  • भावनात्मक परिपक्वता: विवाह के लिए मानसिक और भावनात्मक तैयारी।
  • सही जीवनसाथी का चयन: विलंब जातक को सही व्यक्ति चुनने का अवसर देता है।
  • संबंधों में स्थायित्व: विलंब के बाद विवाह स्थिर और संतुलित होता है।

इसलिए राहु और केतु की स्थिति को नकारात्मक नहीं देखा जाना चाहिए। वे केवल सही समय और परिपक्वता सुनिश्चित करते हैं।

राहु/केतु से प्रभावित विवाह के उपाय

वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं:

  1. नागनागिन की पूजा – राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए।
  2. राहु/केतु मंत्र जप – “ॐ रां राहवे नमः” और “ॐ कें केतुये नमः” का नियमित जप।
  3. दान और सेवा – गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों को दान।
  4. सकारात्मक दृष्टिकोण – विलंब को अवसर और अनुभव के रूप में स्वीकार करना।
  5. वैवाहिक जीवन में संयम – मानसिक संतुलन और धैर्य बनाए रखना।

इन उपायों से राहु और केतु के प्रभाव को संतुलित करके विवाह के विलंब को सकारात्मक और शिक्षाप्रद अनुभव में बदला जा सकता है।

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राहु और केतु के योगों के उदाहरण

  1. राहु सप्तम भाव में
    • विवाह असामान्य परिस्थितियों में होता है।
    • प्रारंभिक समय में संबंधों में भ्रम या अस्थिरता।
  2. केतु सप्तम भाव में
    • जीवनसाथी के प्रति मानसिक दूरी।
    • दुनियावी साझेदारी में कठिनाई।
  3. राहु/केतु का 7वें स्वामी या शुक्र पर प्रभाव
    • विलंबित विवाह, असामान्य जीवनसाथी।
    • दांपत्य जीवन में स्थायित्व और संतुलन के लिए सीख।

राहु और केतु को केवल विलंब या अस्थिरता का कारण नहीं माना जाना चाहिए। ये ग्रह जातक को सही समय, सही जीवनसाथी और वैवाहिक जीवन में परिपक्वता के लिए तैयार करते हैं।

  • राहु अनियमित और असामान्य परिस्थितियाँ लाता है।
  • केतु तटस्थता और आध्यात्मिकता की ओर मोड़ता है।
  • इनके योग 7वें स्वामी या शुक्र के साथ होने पर विवाह विलंबित और असामान्य परिस्थितियों में होता है।

शास्त्र बताते हैं कि राहु और केतु का प्रभाव केवल अनुभव और सीख देने वाला होता है। सही उपायों और धैर्य के साथ विवाह विलंब को सकारात्मक अनुभव में बदला जा सकता है।

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