वेदिक ज्योतिष में सप्तम भाव (7th House) विवाह, साझेदारी और जीवनसाथी का प्रतीक है, जबकि अष्टम भाव (8th House) परिवर्तन, गूढ़ रहस्य, मृत्यु-पुनर्जन्म, गुप्त ज्ञान और दाम्पत्य सुख का प्रतीक माना जाता है। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सप्तम और अष्टम भाव आपस में जुड़ते हैं या किसी ग्रह की दृष्टि/संयोग से यह संबंध बनता है, तब व्यक्ति के जीवन में विवाह और साझेदारी साधारण नहीं रहती। यह संबंध हमेशा गहरे कर्मिक (Karmic) अनुभव, जीवन-परिवर्तन और रहस्यमय परिस्थितियाँ लाता है।
हर ग्रह जब 7वें और 8वें भाव को प्रभावित करता है तो उसका प्रभाव अलग-अलग स्वाद लेकर आता है। कुछ ग्रह संबंधों में प्रेम, रोमांस और आत्मिक जुड़ाव देते हैं, तो कुछ संघर्ष, देरी या कष्ट भी ला सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि अलग-अलग ग्रह जब सप्तम और अष्टम भाव को जोड़ते हैं तो जीवन में क्या परिणाम सामने आते हैं।
सूर्य का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
यदि सूर्य 7वें और 8वें भाव से जुड़ता है तो विवाह जीवन में अहंकार (Ego) की भूमिका बढ़ जाती है। जीवनसाथी प्रायः अधिकार सम्पन्न, प्रभावशाली या किसी उच्च पद वाला हो सकता है। ऐसे योग वाले व्यक्ति का विवाह केवल साथ रहने का साधन नहीं बल्कि जीवन-परिवर्तन का बड़ा कारण बनता है। परंतु समस्या तब आती है जब पति-पत्नी दोनों का अहं टकराता है। इस स्थिति में दाम्पत्य जीवन उतार-चढ़ाव से भरा हो सकता है। यदि सूर्य शुभ स्थिति में हो तो जीवनसाथी के माध्यम से समाज में मान-सम्मान और शक्ति मिलती है।
चंद्रमा का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
जब चंद्रमा 7वें और 8वें भाव से जुड़ता है तो वैवाहिक जीवन में गहरी भावनात्मक तीव्रता (Emotional Intensity) आ जाती है। पति-पत्नी के बीच गहरा मानसिक और आत्मिक जुड़ाव होता है। कभी-कभी यह संबंध अत्यधिक भावुक हो जाता है जिससे दाम्पत्य जीवन में बार-बार उतार-चढ़ाव आते हैं। चंद्रमा के कारण विवाह में मानसिक अस्थिरता और मूड स्विंग्स दिखाई दे सकते हैं। परंतु सकारात्मक स्थिति में यह योग पति-पत्नी को गहरा आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक संबंध देता है।
मंगल का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
यदि मंगल इन भावों से जुड़ता है तो विवाह जीवन में जुनून (Passion) और यौन ऊर्जा (Sexual Intensity) बढ़ जाती है। पति-पत्नी के बीच गहरी आकर्षण शक्ति होती है, लेकिन साथ ही यह संयोग संघर्ष और शक्ति संघर्ष (Power Struggles) भी ला सकता है। कई बार मंगल की वजह से संबंधों में आक्रामकता, गुस्सा और विवाद उत्पन्न होते हैं। यदि मंगल शुभ हो तो विवाह में ऊर्जा, साहस और गहराई आती है, अन्यथा यह वैवाहिक जीवन को अशांत बना सकता है।
बुध का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
जब बुध 7वें और 8वें भाव को जोड़ता है तो संबंधों में बौद्धिक जुड़ाव (Intellectual Bonding) प्रमुख भूमिका निभाता है। पति-पत्नी एक-दूसरे से संवाद और ज्ञान के आदान-प्रदान के माध्यम से जुड़े रहते हैं। विवाह जीवन में रहस्य और गुप्त बातें भी संचार के माध्यम से खुल सकती हैं। कई बार ऐसे योग वाले व्यक्ति का जीवनसाथी व्यापार या लेखन-कला से जुड़ा होता है। सकारात्मक बुध होने पर यह संयोग दंपत्ति को मिलकर गुप्त ज्ञान, शोध या व्यापार में सफलता दिलाता है।
बृहस्पति का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
बृहस्पति का इन भावों से संबंध विवाह को आध्यात्मिक और शुभ दिशा में ले जाता है। जीवनसाथी के माध्यम से व्यक्ति को भाग्य का सहयोग, आध्यात्मिक उन्नति और गहरे कर्मिक सबक मिलते हैं। कई बार यह संयोग जीवनसाथी के धन, पैतृक संपत्ति या उत्तराधिकार से लाभ भी देता है। यदि बृहस्पति बलवान हो तो विवाह स्थिर, धार्मिक और भाग्यशाली बनता है। परंतु नीच या अशुभ स्थिति में बृहस्पति रिश्तों में अति-आदर्शवाद और मोहभंग ला सकता है।
शुक्र का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
जब शुक्र इन भावों को जोड़ता है तो विवाह और संबंधों में गहरी रोमांटिक और यौन आकर्षण शक्ति आ जाती है। पति-पत्नी के बीच प्रेम और मोहकता का भाव प्रबल होता है। यह संयोग जीवन में परिवर्तनशील प्रेम कहानियाँ और कभी-कभी वैवाहिक जीवन में गहरी कामनात्मकता लाता है। यदि शुक्र शुभ है तो विवाह अत्यधिक आनंददायी और आकर्षक बनता है, लेकिन यदि अशुभ स्थिति में है तो यह योग संबंधों में अस्थिरता और प्रेम में धोखा भी ला सकता है।
शनि का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
शनि इन भावों को जोड़कर विवाह जीवन में विलंब (Delay) और कर्मिक जिम्मेदारियाँ (Karmic Responsibilities) लाता है। कई बार ऐसे लोग देर से विवाह करते हैं या जीवनसाथी उम्र में बड़ा/छोटा हो सकता है। यह योग जीवन में गहरी परिपक्वता और गंभीरता लाता है, लेकिन संबंधों में भावनात्मक ठंडापन भी दे सकता है। शनि की वजह से जीवनसाथी के साथ कर्तव्य, अनुशासन और धैर्य सीखना पड़ता है। यदि शनि शुभ हो तो विवाह दीर्घायु और स्थिर रहता है।
राहु का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
यदि राहु इन भावों से जुड़ता है तो विवाह जीवन में आसक्ति (Obsession) और अपरंपरागत संबंध (Unconventional Relationships) आ सकते हैं। जीवनसाथी विदेशी, रहस्यमय या अलग पृष्ठभूमि से हो सकता है। यह योग संबंधों में अत्यधिक आकर्षण और अचानक बदलाव ला सकता है। राहु के कारण पति-पत्नी के बीच गुप्त बातें, रहस्य और कभी-कभी धोखा भी संभव है। लेकिन यदि राहु सकारात्मक रूप से स्थित हो तो यह व्यक्ति को विदेशी जीवनसाथी, अचानक लाभ और गहरी परिवर्तनकारी वैवाहिक यात्रा देता है।
केतु का सप्तम–अष्टम भाव से संबंध
केतु जब इन भावों से जुड़ता है तो यह विवाह जीवन में वैराग्य (Detachment) और पिछले जन्म के कर्मिक संबंध (Past-Life Karmic Connections) लेकर आता है। ऐसे संयोग में व्यक्ति को विवाह में पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती और अचानक से अलगाव या दूरी की स्थिति बन सकती है। कई बार यह योग पति-पत्नी को गहरे आध्यात्मिक अनुभव और कर्मिक सबक भी देता है। सकारात्मक स्थिति में केतु वैवाहिक जीवन को आध्यात्मिक दिशा में ले जाता है, लेकिन भौतिक स्तर पर संतोष कम देता है।
7वें और 8वें भाव का संबंध साधारण नहीं बल्कि अत्यंत गहन और कर्मिक होता है। यह व्यक्ति के विवाह, संबंधों और जीवन की दिशा को पूरी तरह बदल देता है। हर ग्रह इस संबंध में अलग-अलग रंग जोड़ता है—सूर्य अहंकार और प्रतिष्ठा, चंद्रमा भावनाएँ, मंगल जुनून, बुध संवाद, बृहस्पति आध्यात्मिकता, शुक्र प्रेम, शनि जिम्मेदारियाँ, राहु आकर्षण और केतु वैराग्य। इसीलिए किसी भी कुंडली का विश्लेषण करते समय यह देखना अत्यंत आवश्यक है कि कौन सा ग्रह इन भावों को जोड़ रहा है और उसकी स्थिति कैसी है।
यदि आपकी कुंडली में 7वें और 8वें भाव का संबंध बन रहा है, तो यह निश्चित है कि आपका विवाह और संबंध केवल भौतिक अनुभव नहीं बल्कि गहरे कर्मिक और आध्यात्मिक सबक लेकर आएंगे।