विवाह (Marriage) भारतीय संस्कृति और जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह केवल दो व्यक्तियों का साथ नहीं बल्कि दो परिवारों, दो परंपराओं और दो वंशों का मिलन है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका दांपत्य जीवन सुखमय और संतुलित हो। परंतु कई बार विवाह में अड़चनें आती हैं और जातक को अपेक्षा से देर से विवाह करना पड़ता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, विवाह का समय, जीवनसाथी का स्वभाव और वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता—सब कुछ जन्मकुंडली में स्पष्ट संकेत देता है। यदि संबंधित भाव (houses) और ग्रह (planets) अशुभ प्रभाव में हों तो विवाह में विलंब (Delay in Marriage) हो सकता है।
विवाह के लिए मुख्य भाव कौन से हैं?
जन्मकुंडली में विवाह और उससे संबंधित सुख को समझने के लिए चार प्रमुख भावों का अध्ययन किया जाता है:
- सप्तम भाव (7th House) – जीवनसाथी, विवाह और दांपत्य जीवन।
- द्वितीय भाव (2nd House) – परिवार, विवाहोपरांत परिवार का विस्तार।
- एकादश भाव (11th House) – इच्छाओं की पूर्ति और विवाह प्रस्ताव।
- द्वादश भाव (12th House) – शयन सुख और वैवाहिक जीवन की अंतरंगता।
अब इन चारों भावों को विस्तार से समझते हैं।
1. सप्तम भाव (7th House) – विवाह का मूल आधार
- महत्त्व
सप्तम भाव को विवाह और जीवनसाथी का मुख्य भाव माना गया है। यह बताता है कि विवाह कब होगा, जीवनसाथी कैसा होगा और दांपत्य जीवन कैसा रहेगा। - शुभ प्रभाव
यदि सप्तम भाव शुभ ग्रहों (बृहस्पति, शुक्र, चंद्र) से प्रभावित हो तो विवाह समय पर होता है और जीवनसाथी सुंदर, योग्य तथा सहयोगी होता है। - अशुभ प्रभाव
- शनि की दृष्टि → विवाह में विलंब।
- राहु/केतु → असामान्य रिश्ते, अचानक टूटे हुए संबंध।
- मंगल की स्थिति (मांगलिक दोष) → विवाह में रुकावटें और कलह।
- सप्तमेश (7th lord) नीच का, अस्त या पाप ग्रह से पीड़ित हो तो देर से विवाह।
- शास्त्रीय दृष्टिकोण
बृहत पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है कि यदि सप्तमेश पाप ग्रह से युत होकर नीच राशि में हो तो विवाह में बाधा और देर अवश्य होती है।
2. द्वितीय भाव (2nd House) – परिवार और वैवाहिक सुख का विस्तार
- महत्त्व
द्वितीय भाव परिवार, वाणी और विवाह के बाद बनने वाले नए परिवार का द्योतक है। यदि यह भाव अशुभ हो तो विवाह प्रस्तावों में पारिवारिक अड़चन आती है। - शुभ प्रभाव
द्वितीय भाव में शुभ ग्रह होने पर विवाह परिवार की सहमति से होता है और दांपत्य जीवन सुखमय रहता है। - अशुभ प्रभाव
- राहु/केतु का प्रभाव → परिवार की असहमति, जाति या सामाजिक कारणों से अड़चन।
- चंद्रमा पीड़ित → परिवार से भावनात्मक असमर्थन।
- द्वितीयेश यदि 6th, 8th या 12th भाव में हो तो विवाह देर से होता है।
- उदाहरण
यदि कन्या लग्न के जातक का द्वितीयेश शुक्र हो और वह 8th भाव में राहु से युत हो, तो परिवारिक कारणों से विवाह टल सकता है।
3. एकादश भाव (11th House) – इच्छाओं की पूर्ति और विवाह प्रस्ताव
- महत्त्व
एकादश भाव इच्छाओं, लाभ और सामाजिक रिश्तों का भाव है। विवाह के लिए मिलने वाले प्रस्ताव इसी भाव से देखे जाते हैं। - शुभ प्रभाव
- एकादश भाव शुभ ग्रहों से युक्त हो तो जल्दी-जल्दी अच्छे प्रस्ताव आते हैं।
- यहाँ गुरु या शुक्र का होना विवाह को सुखमय और समय पर करवाता है।
- अशुभ प्रभाव
- शनि यहाँ हो तो विवाह की इच्छाएँ देर से पूरी होती हैं।
- राहु गलत रिश्तों में फँसाता है।
- एकादशेश यदि नीचस्थ होकर 6th/8th भाव में हो तो बार-बार रिश्ते टूटते हैं।
4. द्वादश भाव (12th House) – शयन सुख और दांपत्य आनंद
- महत्त्व
द्वादश भाव शयन सुख, खर्च और वैवाहिक जीवन के अंतरंग पक्ष से जुड़ा है। - शुभ प्रभाव
यदि यह भाव शुभ ग्रहों से युक्त हो तो वैवाहिक जीवन में सुख और संतोष मिलता है। - अशुभ प्रभाव
- शनि यहाँ होने पर अकेलापन और वैवाहिक सुख में कमी।
- राहु/केतु के कारण असामान्य इच्छाएँ या वैवाहिक जीवन में बाधा।
- द्वादशेश अस्त या नीचस्थ होने पर वैवाहिक सुख देर से मिलता है।
विवाह में देरी के प्रमुख ज्योतिषीय कारण
- शनि का प्रभाव – शनि “विलंब का कारक” है।
- मंगल दोष (कुज दोष) – मांगलिक दोष होने पर विवाह बाधित होता है।
- राहु–केतु का प्रभाव – रिश्ते टूटते हैं या गलत दिशा में जाते हैं।
- ग्रहण योग – विवाह में अस्थिरता और बाधा लाता है।
- बृहस्पति की दुर्बलता – स्त्रियों के विवाह के लिए बृहस्पति का मजबूत होना आवश्यक है।
- शुक्र की कमजोरी – पुरुषों के विवाह में शुक्र का शुभ होना अनिवार्य है।
- दशा और गोचर – विवाह तभी होता है जब अनुकूल दशा और गोचर मिलते हैं।
स्त्री और पुरुष की कुंडली में अंतर
- पुरुष की कुंडली
- विवाह और पत्नी के लिए शुक्र प्रमुख ग्रह है।
- सप्तम भाव और शुक्र की स्थिति देखकर विवाह का समय और गुणधर्म समझा जाता है।
- स्त्री की कुंडली
- विवाह और पति के लिए बृहस्पति प्रमुख ग्रह है।
- सप्तम भाव और गुरु की स्थिति से विवाह सुख का अनुमान लगाया जाता है।
शास्त्रीय उद्धरण
- बृहत जातक में कहा गया है:
“सप्तमे पापग्रहाणां दृष्टे विवाहे विलम्बः।“
(अर्थ: सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि होने पर विवाह में विलंब होता है।) - फला दीपिका में उल्लेख है:
“शनि यदि सप्तमे भावे तिष्ठेत, तदा जातकः विवाहं विलम्बेन लभते।“
(अर्थ: यदि शनि सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है।)
विवाह में विलंब दूर करने के उपाय
- शनि शांति उपाय
- शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएँ।
- शनि स्तोत्र और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- मंगल दोष शांति
- मंगलवार को हनुमानजी की पूजा करें।
- कुँवारी कन्याओं को लाल वस्त्र और मिठाई दान करें।
- गुरु को बलवान करना
- बृहस्पतिवार को पीली वस्तुओं का दान करें।
- केले के वृक्ष की पूजा करें।
- शुक्र को मजबूत करना
- शुक्रवार को माँ लक्ष्मी की पूजा करें।
- सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार सामग्री दान करें।
- राहु–केतु शांति
- नागपंचमी पर नागदेवता की पूजा करें।
- राहु-केतु मंत्र का जप करें।
विवाह में विलंब केवल सामाजिक या पारिवारिक कारणों से नहीं होता, बल्कि इसके पीछे गहरे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं। सप्तम भाव, द्वितीय भाव, एकादश भाव और द्वादश भाव मिलकर विवाह और उसके सुख-दुःख का निर्धारण करते हैं। यदि ये भाव और इनके स्वामी अशुभ प्रभाव में हों, तो विवाह में बाधाएँ आती हैं।
परंतु ज्योतिष हमें यह भी बताता है कि उचित उपायों, पूजा-पाठ और ग्रह शांति से इन बाधाओं को दूर किया जा सकता है। समय आने पर शुभ दशा और गोचर अवश्य ही विवाह का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
इसलिए कहा गया है:
“ग्रह बाधा कर सकती है विलंब, परंतु उचित उपाय और ईश्वर कृपा से विवाह निश्चित होता है।“