विवाह में देरी के सामान्य ज्योतिषीय योग और उपाय

भारतीय समाज में विवाह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं बल्कि पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि विवाह समय पर हो और दांपत्य जीवन सुखमय रहे। परंतु कई बार विवाह में अड़चनें आती हैं और अपेक्षा से अधिक देर हो जाती है।

वैदिक ज्योतिष (Vedic Astrology) में इसके पीछे स्पष्ट कारण बताए गए हैं। कुछ विशेष योग (Astrological Combinations) ऐसे होते हैं जो विवाह में रुकावट या विलंब का संकेत देते हैं।

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आइए विस्तार से समझते हैं—

विवाह में देरी के सामान्य ज्योतिषीय योग

सप्तम भाव और शनि का प्रभाव

  • सप्तम भाव (7th house) विवाह और जीवनसाथी का मुख्य कारक है।
  • यदि यहाँ शनि स्थित हो या शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो विवाह देर से होता है।
  • शनि “विलंब का ग्रह” माना जाता है। इसलिए यह जल्दी विवाह नहीं होने देता।
  • हालाँकि जब विवाह होता है तो स्थिर और गंभीर जीवनसाथी मिलता है।

सप्तमेश का अशुभ या पीड़ित होना

  • यदि सप्तम भाव का स्वामी (7th lord) नीचस्थ, वक्री (retrograde), अस्त (combust) या पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो विवाह में रुकावट आती है।
  • उदाहरण: यदि सप्तमेश राहु/केतु से युत हो या शनि की दृष्टि में हो, तो विवाह प्रस्ताव आते-आते टूट जाते हैं।

शुक्र और गुरु का अशुभ भावों में होना

  • पुरुषों के लिए शुक्र और स्त्रियों के लिए गुरु (बृहस्पति) विवाह के मुख्य ग्रह हैं।
  • यदि शुक्र या गुरु 6th, 8th या 12th भाव में बैठे हों तो संबंधों में कठिनाई और विवाह में देरी होती है।
  • यह स्थिति रिश्तों में अस्थिरता भी लाती है।

केतु का सप्तम भाव में होना

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  • केतु विरक्ति और वैराग्य का ग्रह है।
  • यदि यह सप्तम भाव में हो तो जातक विवाह में अरुचि दिखा सकता है।
  • कई बार यह विवाह के बाद अलगाव या दूरी का कारण बनता है।

राहु + शुक्र का संयोजन

  • राहु और शुक्र का युति (conjunction) असामान्य या परंपरागत न मानी जाने वाली प्रेम कहानियों की ओर संकेत करती है।
  • ऐसे जातक का विवाह समाज से स्वीकार्यता मिलने में देर से होता है।
  • कई बार यह अंतरजातीय या विदेशी संबंधों का भी संकेत होता है।

नवांश कुंडली (D9) में अशुभ प्रभाव

  • विवाह और दांपत्य सुख का गहन अध्ययन नवांश (D9 chart) से किया जाता है।
  • यदि नवांश में सप्तमेश या शुक्र पीड़ित हो तो विवाह में देरी होती है।
  • नवांश में राहु/केतु या शनि का प्रभाव होने से रिश्तों में स्थिरता देर से आती है।

विवाह का समय (Timing of Marriage)

वैदिक ज्योतिष में विवाह का समय केवल योगों से नहीं बल्कि दशा-भुक्ति (Dasha-Antardasha) और गोचर (Transit) से निर्धारित होता है।

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दशा-भुक्ति से विवाह का योग

  • विवाह सामान्यतः तब होता है जब द्वितीय, सप्तम या एकादश भाव के स्वामी की दशा/अंतर्दशा चल रही हो।
  • यदि उस समय गुरु या शुक्र भी अनुकूल स्थिति में हों तो विवाह तय हो जाता है।

गुरु का गोचर (Transit of Jupiter)

  • गुरु जब जातक की कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश या शुक्र पर दृष्टि डालता है तो विवाह के योग प्रबल हो जाते हैं।
  • विशेषकर कन्या और स्त्रियों की कुंडली में बृहस्पति का गोचर अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शनि का गोचर (Transit of Saturn)

  • शनि का गोचर विवाह को देर से कराता है, लेकिन स्थिर संबंध देता है।
  • जब शनि सप्तम भाव से गुजरता है या सप्तमेश पर दृष्टि डालता है, तो विवाह अक्सर देर से लेकिन स्थायी होता है।

विवाह में देरी से होने वाले परिणाम

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  • समाज और परिवार का दबाव बढ़ना।
  • रिश्तों के अवसर बार-बार टूटना।
  • जातक में मानसिक तनाव और असुरक्षा।
  • कई बार प्रेम संबंध भी असफल हो जाते हैं।

विवाह में देरी दूर करने के उपाय (Astrological Remedies)

शुक्र और गुरु को मज़बूत करना

  • पुरुषों के लिए शुक्र (Venus) और स्त्रियों के लिए गुरु (Jupiter) बलवान होना चाहिए।
  • शुक्र के लिए → शुक्रवार को माँ लक्ष्मी की पूजा करें, सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार सामग्री दान करें।
  • गुरु के लिए → बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र, चना दाल और केले का दान करें।

यदि ज्योतिषीय परामर्श से उचित हो तो पुरुष हीरा (Diamond) और स्त्री पुखराज (Yellow Sapphire) धारण कर सकती है।

शनि की शांति

  • शनि विवाह में देरी कराता है।
  • शनिवार को काली वस्तुओं का दान करें (काले तिल, काली उड़द, काला कपड़ा)।
  • शनि स्तोत्र और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएँ।

राहु-केतु के उपाय

  • राहु-केतु विवाह में अस्थिरता और समाज से विरोध कराते हैं।
  • नागपंचमी पर नागदेवता की पूजा करें।
  • राहु/केतु मंत्र का जप करें।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष लाभकारी होती है।

नवग्रह पूजा

  • यदि विवाह में कई ग्रह बाधा डाल रहे हों तो नवग्रह शांति पूजा करनी चाहिए।
  • इससे ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा कम होती है और शुभ फल मिलते हैं।

व्यावहारिक उपाय (Practical Remedies)

  • विवाह को लेकर अत्यधिक ऊँची अपेक्षाएँ न रखें।
  • परिवार और समाज की राय को महत्व दें।
  • आवश्यकता पड़ने पर विवाह परामर्श (Marriage Counseling) लें।
  • प्रेम विवाह या अंतरजातीय विवाह की स्थिति में धैर्य और संवाद रखें।

विवाह में देरी होना केवल सामाजिक या पारिवारिक कारणों से नहीं बल्कि ज्योतिषीय कारणों से भी होता है।

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  • शनि, राहु, केतु, अशुभ दशाएँ, सप्तमेश की पीड़ा और नवांश कुंडली के योग – सब मिलकर विवाह को देर से करवाते हैं।
  • परंतु ज्योतिष केवल समस्या नहीं बताता, बल्कि समाधान भी देता है।

ग्रहों की शांति, उचित पूजा-पाठ, और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर विवाह में देरी को दूर किया जा सकता है।
आखिरकार, विवाह तभी होता है जब भाग्य और समय दोनों अनुकूल हों।

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