कुंडली में विवाह योग: कुछ रहस्यमय लेकिन बेहद महत्वपूर्ण तथ्य

क्या आपकी कुंडली में विवाह का योग है, फिर भी रिश्ता नहीं बन रहा? या बार-बार रिश्ते टूट रहे हैं? विवाह केवल 7वें भाव से नहीं, बल्कि कई रहस्यमय संकेतों से जुड़ा होता है, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। इस ब्लॉग में हम कुंडली में छिपे ऐसे गूढ़ तथ्यों की बात करेंगे जो विवाह योग को प्रभावित करते हैं — कभी विवाह को रोकते हैं तो कभी आध्यात्मिक रिश्तों की ओर खींचते हैं।

सिर्फ 7वां भाव नहीं, पूरा त्रिकोण महत्वपूर्ण है

अक्सर लोग समझते हैं कि सिर्फ 7वां भाव (विवाह का घर) ही शादी के लिए जिम्मेदार है। लेकिन वास्तविकता यह है कि विवाह योग बनाने में 2nd, 7th और 11th भाव का त्रिकोण मुख्य भूमिका निभाता है।

  • 2nd House – परिवार में जुड़ाव देता है
  • 7th House – वैवाहिक जीवन का मूल स्तंभ
  • 11th House – रिश्तों की फुलफिलमेंट और सामाजिक स्वीकृति

यदि इन तीनों भावों में शुभ ग्रह जैसे बृहस्पति (Jupiter), शुक्र (Venus) या चंद्रमा (Moon) का सहयोग हो, तो विवाह योग प्रबल बनता है।

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केतु और शनि का गहरा असर – विलंब या अध्यात्म की ओर मोड़?

अगर कुंडली में शनि या केतु 7वें भाव में हो या उस पर दृष्टि डाल रहे हों, तो विवाह में देरी, रुकावट या रिश्तों में अलगाव देखने को मिल सकता है। लेकिन यह हमेशा नकारात्मक नहीं होता।

  • केतु आत्मा को “कर्मिक कनेक्शन” की ओर ले जाता है — शायद यह रिश्ता पहले जन्म से जुड़ा हो।
  • शनि रिश्ते को परखता है, सच्चाई की परीक्षा लेता है। अगर आपने अपने कर्म अच्छे किए हैं, तो विवाह विलंब के बाद भी अत्यंत स्थायी होगा।

राहु + शुक्र = आकर्षण या भ्रम?

अगर कुंडली में राहु और शुक्र एक साथ हों (विशेषकर 7वें या 5वें भाव में), तो व्यक्ति को तीव्र आकर्षण की ओर खींचा जा सकता है। यह कभी-कभी “मोह illusion” होता है, जो टिकता नहीं।

👉 ऐसा योग कई बार “अवैध संबंध” या “लव अफेयर में धोखा” जैसी घटनाओं का भी संकेत देता है।
👉 लेकिन राहु-शुक्र का संयोजन फिल्मी प्रेम जैसा तेज होता है – जल्दी जुड़ाव, जल्दी बिखराव।

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दृष्टि योग (Aspects) और विवाह में बाधाएं

बहुत बार विवाह में बाधाएं ग्रहों की स्थिति नहीं, बल्कि उनकी दृष्टि (Aspect) के कारण होती हैं:

  • मंगल की दृष्टि 7वें भाव पर हो तो वैवाहिक तनाव की संभावना
  • शनि की तीसरी या दसवीं दृष्टि रिश्ते को गंभीर बना देती है, लेकिन विलंब करती है
  • बृहस्पति की दृष्टि – हमेशा शुभफलदायी मानी जाती है, विशेषकर अगर वह 7वें या शुक्र पर पड़े

दशा और गोचर का रोल – समय ही सब कुछ है

कई बार कुंडली में योग होते हुए भी विवाह नहीं होता, क्योंकि समय (दशा और गोचर) अनुकूल नहीं होता।

  • यदि किसी की दशा शुक्र या बृहस्पति की न होकर राहु, केतु या शनि की चल रही है, तो अच्छे योग भी निष्क्रिय हो जाते हैं।
  • गोचर में शनि का 7वें भाव पर भ्रमण विवाह में ब्रेक डाल सकता है।

👉 इसलिए सिर्फ जन्म कुंडली नहीं, चालू दशा और गोचर का विश्लेषण जरूरी है।

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पिछले जन्म का कर्म और ‘कर्मिक रिलेशनशिप’

कुछ कुंडलियाँ विवाह के लिए बनी ही नहीं होतीं — यह सुनकर आश्चर्य होता है, लेकिन सच है।
ऐसी कुंडलियाँ अक्सर:

  • 12वें भाव में शुक्र/केतु होने पर
  • चंद्रमा या शुक्र नीच के हों
  • नवमांश कुंडली में 7वां भाव खाली या पापग्रहों से पीड़ित हो

ऐसी स्थिति में व्यक्ति विवाह की बजाय आध्यात्मिक प्रेम, ध्यान या समाजसेवा की ओर आकर्षित होता है।

कुंडली में विवाह योग केवल भावों और ग्रहों का खेल नहीं है — यह आत्मा के पिछले कर्मों, वर्तमान समय और अंदरूनी भावनात्मक ऊर्जा का सम्मिश्रण है। इसलिए अगर आपकी कुंडली में देरी हो रही है या रिश्ते नहीं बन रहे, तो डरिए मत — शायद आपकी आत्मा अभी पूर्ण रूप से तैयार नहीं है।

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एक अनुभवी ज्योतिषी से पूरी कुंडली का विश्लेषण करवाना ही सटीक विवाह योग जानने का सही तरीका है।

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